
मानव भूगोल का परिचय
पृथ्वी के धरातल पर पाए जाने वाले सभी तथ्यों का अध्ययन
करके उनके बारे में जानना, तत्पश्चात विश्लेषण करके उनका वर्णन करना अथवा लिखना
भूगोल (Geography) शब्द का शाब्दिक अर्थ है। इसमें पृथ्वी के धरातल पर उपस्थित
समस्त भू-दृश्यों का अध्ययन सम्मिलित हो जाता है। इतिहास के ज्ञात काल के अधिकांश
में केवल पर्वत , पठार, मैदान, नदियाँ, सागर, वर्षा, रेगिस्तान, वनस्पति, खनिज
पदार्थ, जीव-जन्तु, नगर एवं देशों तथा देशों की राजनीतिक सीमाओं को ही भूगोल माना
जाता रहा है । वर्तमान में भी वे सभी व्यक्ति, जिनका भूगोल के अध्ययन से कोई विशेष
सम्बन्ध नहीं रहा ऐसा ही मानते हैं । अतः उन्हें भूगोल के पूर्ण विस्तार का ज्ञान
ही नहीं हो पाता ।
मानव
भूगोल, भूगोल की प्रमुख शाखा हैं जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति से लेकर वर्तमान समय तक उसके पर्यावरण के साथ सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता हैं। मानव भूगोल की एक अत्यन्त लोकप्रिय
और बहु अनुमोदित परिभाषा है, मानव एवं उसका प्राकृतिक पर्यावरण के साथ
समायोजन का अध्ययन।
मानव भूगोल में पृथ्वी तल पर मानवीय तथ्यों के
स्थानिक वितरणों का अर्थात् विभिन्न प्रदेशों के मानव-वर्गों द्वारा किये गये
वातावरण समायोजनों और स्थानिक संगठनों का अध्ययन किया जाता है। मानव
भूगोल में मानव-वर्गो और उनके वातावरणों की शक्तियों, प्रभावों
तथा प्रतिक्रियाओं के पारस्परिक कार्यात्मक सम्वन्धों का अध्ययन, प्रादेशिक
आधार पर किया जाता है।
मानव भूगोल का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता
जा रहा है। यूरोपीय देशों,
पूर्ववर्ती सोवियत संघ, संयुक्त
राज्य अमेरिका तथा भारत के विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन में
अधिकाधिक रूचि ली जा रही है। पिछले लगभग ४० वर्षों में मानव भूगोल के
अध्ययन क्षेत्र का वैज्ञानिक विकास हुआ है और संसार के विभिन्न देशों में
वहाँ की जनसंख्या की आर्थिक, सामाजिक,
सांस्कृतिक उन्नति के लिये संसाधन-योजना
में इसके ज्ञान का प्रयोग किया जा रहा है।
मानव भूगोल पृथ्वी
की सतहों और मानव समुदायों के बीच सम्बंधों का संश्लेषित अध्ययन है। यह तीन
संघटकों से निकटतम रूप में जुड़ा हैः
- मानवीय जनसंख्या का स्थानिक विश्लेषण
- मानवीय जनसंख्या और पर्यावरण के बीच के संबंधों का पारिस्थितिक भूगोल
- विश्लेषण और प्रादेशिक सश्लेषण, जो कि धरातल के क्षेत्रीय विभेदीकरण में पहली दोनों विषयवस्तुओं को जोड़ता है।
मानव भूगोल की कई उप-शाखायें है :
- मानवविज्ञान भूगोल : यह बड़े पैमाने पर स्थानिक सन्दर्भ में विविध प्रजातियों का अध्ययन करता है।
- सांस्कृतिक भूगोल : यह मानवीय संस्कृतियों की उत्पत्ति, संघटकों और प्रभावों की चर्चा करता है।
- आर्थिक भूगोल : यह स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर आर्थिक गतिविधियों की अवस्थिति व वितरण का अध्ययन करता है। आर्थिक भूगोल का अध्ययन निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता हैः संसाधन भूगोल, कृषि भूगोल, औद्योगिक व परिवहन भूगोल।
- राजनीतिक भूगोल : यह स्थानिक सन्दर्भ में राजनीतिक परिघटनाओं का अध्ययन करता है। इसका मुख्य उद्देश्य राजनीतिक व प्रशासनिक प्रदेशों के उद्भव व रूपान्तरण की व्याख्या करना है।
- ऐतिहासिक भूगोल : भौगोलिक परिघटनाओं का स्थानिक व कालिक अध्ययन ऐतिहासिक भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है।
- सामाजिक भूगोल : यह स्थान की सामाजिक परिघटनाओं का विश्लेषण करता है। निर्धनता, स्वास्थ्य, शिक्षा, जीवनयापन सामाजिक भूगोल के कुछ मुख्य क्षेत्र हैं।
- जनसंख्या भूगोल : यह जनसंख्या के विविध पक्षों जैसे जनसंख्या वितरण, घनत्व, संघटन, प्रजनन क्षमता, मर्त्यता, प्रवास आदि का अध्ययन करता है।
- अधिवास भूगोल : यह ग्रामीण/नगरीय अधिवासों के आकार, वितरण, प्रकार्य, पदानुक्रम और अधिवास व्यवस्था से सम्बंधित अन्य आधारों का अध्ययन करता है।
भूगोल एक
प्राचीनतम विज्ञान है और इसकी नींव प्रारंभिक यूनानी विद्वानों के कार्यों में दिखाई पड़ती है। भूगोल शब्द का प्रथम प्रयोग
यूनानी विद्वान इरेटॉस्थनीज ने तीसरी शताब्दी
ईसा पूर्व में किया था। भूगोल विस्तृत पैमाने पर सभी भौतिक व मानवीय तथ्यों की अन्तर्क्रियाओं और इन अन्तर्क्रियाओं से उत्पन्न स्थलरूपों का अध्ययन करता है। यह
बताता है कि कैसे, क्यों और कहाँ मानवीय व प्राकृतिक क्रियाकलापों का उद्भव होता है और कैसे ये क्रियाकलाप एक दूसरे से अन्तर्संबंधित हैं।
भूगोल की अध्ययन
विधि परिवर्तित होती रही है। प्रारंभिक विद्वान वर्णनात्मक भूगोलवेत्ता थे। बाद में, भूगोल विश्लेषणात्मक भूगोल के रूप में विकसित हुआ। आज यह विषय न केवल वर्णन करता है, बल्कि विश्लेषण के साथ-साथ भविष्यवाणी भी करता है।
प्राचीन काल
आरंभिक प्रमाणों
के अनुसार इस समय के विद्वान मानचित्र निर्माण और खगोलीय मापों द्वारा पृथ्वी के भौतिक तथ्यों को समझते थे।
भूगोल में आरंभिक विद्वान देने का श्रेय यूनान को ही जाता है, जिसमें प्रमुख थे होमर, हेरोडोटस, थेल्स, अरस्तु और इरेटॉस्थनीज।
पूर्व-आधुनिक काल
यह काल 15वीं सदी के मध्य से शुरू होकर 18वीं सदी के पूर्व तक चला। यह काल आरंभिक भूगोलवेत्ताओं की खोजों और अन्वेषणों द्वारा
विश्व की भौतिक व सांस्कृतिक प्रकृति के बारे में वृहत
ज्ञान प्रदान करता है। 17वीं सदी का प्रारंभिक काल नवीन 'वैज्ञानिक भूगोल' की शुरूआत का गवाह बना। कोलम्बस, वास्कोडिगामा, मैगलेन और थॉमस कुक इस काल के प्रमुख अन्वेषणकर्त्ता थे। वारेनियस, कान्ट, हम्बोल्ट और रिटर इस काल के प्रमुख
भूगोलवेत्ता थे। इन विद्वानों ने मानचित्रकला के विकास में योगदान दिया और नवीन स्थलों की खोज की, जिसके फलस्वरूप भूगोल एक वैज्ञानिक विषय के रूप में विकसित
हुआ।
आधुनिक काल
रिटर और हम्बोल्ट का उल्लेख बहुधा आधुनिक भूगोल के संस्थापक के रूप में किया जाता है। सामान्यतः 19वीं सदी के उत्तरार्ध का काल आधुनिक भूगोल का काल माना जाता है। वस्तुतः रेट्जेल प्रथम आधुनिक
भूगोलवेत्ता थे, जिनने चिरसम्मत भूगोलवेत्ताओं द्वारा
स्थापित नींव पर आधुनिक भूगोल की संरचना का निर्माण किया।
नवीन काल
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भूगोल का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ। हार्टशॉर्न जैसे अमेरिकी और यूरोपीय भूगोलवेत्ताओं ने इस दौरान अधिकतम योगदान दिया।
हार्टशॉर्न ने भूगोल को एक ऐसे विज्ञान के रूप में
परिभाषित किया जो क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन करता है। वर्तमान भूगोलवेत्ता प्रादेशिक उपागम और क्रमबद्ध उपागम को विरोधाभासी की जगह पूरक उपागम के रूप में
देखते हैं।
अंग तथा शाखाएँ
भूगोल ने आज विज्ञान का दर्जा प्राप्त कर लिया है, जो पृथ्वी तल पर उपस्थित विविध प्राकृतिक और सांस्कृतिक रूपों की व्याख्या करता है। भूगोल एक समग्र और
अन्तर्सम्बंधित क्षेत्रीय अध्ययन है जो स्थानिक संरचना
में भूत से भविष्य में होने वाले परिवर्तन का अध्ययन करता है। इस तरह भूगोल का क्षेत्र विविध विषयों जैसे सैन्य सेवाओं, पर्यावरण प्रबंधन, जल संसाधन, आपदा प्रबंधन, मौसम विज्ञान, नियोजन और विविध सामाजिक विज्ञानों में है। इसके अलावा
भूगोलवेत्ता दैनिक जीवन से सम्बंधित घटनाओं जैसे पर्यटन, स्थान परिवर्तन, आवासों तथा स्वास्थ्य सम्बंधी क्रियाकलापों में
सहायक हो सकता है
विद्वानों ने
भूगोल के तीन मुख्य विभाग किए हैं- गणितीय
भूगोल, भौतिक
भूगोल तथा मानव
भूगोल। पहले विभाग में पृथ्वी का सौर जगत के अन्यान्य ग्रहों और
उपग्रहों आदि से संबंध बतलाया जाता है और उन सबके साथ
उसके सापेक्षिक संबंध का वर्णन होता है। इस विभाग का बहुत कुछ संबंध गणित
ज्योतिष से भी है। दूसरे विभाग में पृथ्वी के
भौतिक रूप का वर्णन होता है और उससे यह जाना जाता है कि नदी, पहाड़, देश, नगर आदि किसे कहते है और अमुक देश, नगर, नदी या पहाड़ आदि कहाँ हैं। साधारणतः
भूगोल से उसके इसी विभाग का अर्थ लिया जाता है। भूगोल का तीसरा विभाग मानव भूगोल है जिसके अन्तर्गत राजनीतिक
भूगोल भी आता है जिसमें इस बात का विवेचन होता
है कि राजनीति, शासन, भाषा, जाति और सभ्यता आदि के विचार से पृथ्वी के कौन विभाग है और उन
विभागों का विस्तार और सीमा आदि क्या है।
एक अन्य दृष्टि से
भूगोल के दो प्रधान अंग है : शृंखलाबद्ध भूगोल तथा प्रादेशिक
भूगोल। पृथ्वी के किसी
स्थानविशेष पर शृंखलाबद्ध भूगोल की शाखाओं के समन्वय को केंद्रित करने का प्रतिफल
प्रादेशिक भूगोल है।
भूगोल एक
प्रगतिशील विज्ञान है। प्रत्येक देश में विशेषज्ञ अपने अपने क्षेत्रों का विकास कर रहे हैं। फलत: इसकी निम्नलिखित अनेक
शाखाएँ तथा उपशाखाएँ हो गई है :
- आर्थिक भूगोल-- इसकी शाखाएँ कृषि, उद्योग, खनिज, शक्ति तथा भंडार भूगोल और भू उपभोग, व्यावसायिक, परिवहन एवं यातायात भूगोल हैं। अर्थिक संरचना संबंधी योजना भी भूगोल की शाखा है।
- राजनीतिक भूगोल -- इसके अंग भूराजनीतिक शास्त्र, अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, औपनिवेशिक भूगोल, शीत युद्ध का भूगोल, सामरिक एवं सैनिक भूगोल हैं।
- ऐतिहासिक भूगोल --प्राचीन, मध्यकालीन, आधुनिक वैदिक, पौराणिक, इंजील संबंधी तथा अरबी भूगोल भी इसके अंग है।
- रचनात्मक भूगोल-- इसके भिन्न भिन्न अंग रचना मिति, सर्वेक्षण आकृति-अंकन, चित्रांकन, आलोकचित्र, कलामिति (फोटोग्रामेटरी) तथा स्थाननामाध्ययन हैं।
- इसके अतिरिक्त भूगोल के अन्य खंड भी विकसित हो रहे हैं जैसे ग्रंथ विज्ञानीय, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, गणित शास्त्रीय, ज्योतिष शास्त्रीय एवं भ्रमण भूगोल तथा स्थाननामाध्ययन हैं।
- भौतिक भूगोल
- भौतिक भूगोल -- इसके भिन्न भिन्न शास्त्रीय अंग स्थलाकृति, हिम-क्रिया-विज्ञान, तटीय स्थल रचना, भूस्पंदनशास्त्र, समुद्र विज्ञान, वायु विज्ञान, मृत्तिका विज्ञान, जीव विज्ञान, चिकित्सा या भैषजिक भूगोल तथा पुरालिपि शास्त्र हैं।
- भू-आकृति (स्थलाकृति) विज्ञान
- पृथ्वी पर ७ महाद्वीप हैं: एशिया, यूरोप, अफ्रीका, उत्तरी अमरीका, दक्षिण अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका।
- पृथ्वी पर 4 महासागर हैं: अटलांटिक महासागर, [आर्कटिक महासागर],हिंद महासागर, प्रशान्त महासागर |
स्थलाकृति विज्ञान -
शैल
- आग्नेय शैल
- कायांतरित शैल
- अवसादी शैल |
महासागरीय विज्ञान
- ज्वार-भाटा
- लवणता
- तट
- महासागरीय तरंगे
- महासागरीय निक्षेप
जलवायु-विज्ञान
वायुमण्डल, ऋतु, तापमान, गर्मी, उष्णता, क्षय ऊष्मा, आर्द्रता |
मानव भूगोल
मानव भूगोल, भूगोल की वह शाखा है जो मानव समाज के क्रियाकलापों और उनके परिणाम स्वरूप बने भौगोलिक प्रतिरूपों का अध्ययन करता है।
इसके अन्तर्गत मानव के राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा आर्थिक पहलू आते हैं। मानव भूगोल को अनेक श्रेणियों में बांटा जा सकता है, जैसे:'
- आर्थिक भूगोल
- राजनीतिक भूगोल
- जनसंख्या भूगोल
- सांस्कृतिक भूगोल
- कृषि भूगोल
- परिवहन भूगोल
- पर्यटन भूगोल
भूगोल (Geography) वह शास्त्र है जिसके द्बारा पृथ्वी के ऊपरी स्वरुप और उसके प्राकृतिक विभागों (जैसे, पहाड़, महादेश, देश, नगर, नदी, समुद्र, झील, डमरुमध्य, उपत्यका, अधित्यका, वन आदि) का ज्ञान होता है। प्राकृतिक विज्ञानों के निष्कर्षों के बीच कार्य-कारण संबंध स्थापित करते हुए पृथ्वीतल की विभिन्नताओं का मानवीय दृष्टिकोण से अध्ययन ही भूगोल का सार
तत्व है। पृथ्वी की सतह पर जो स्थान विशेष हैं
उनकी समताओं तथा विषमताओं का कारण और उनका स्पष्टीकरण भूगोल का निजी क्षेत्र है। भूगोल शब्द दो शब्दों भू यानि पृथ्वी और गोल से मिलकर बना है।
भूगोल एक ओर अन्य
शृंखलाबद्ध विज्ञानों से प्राप्त ज्ञान का उपयोग उस सीमा तक करता है जहाँ तक वह घटनाओं और विश्लेषणों की
समीक्षा तथा उनके संबंधों के यथासंभव समुचित समन्वय करने
में सहायक होता है। दूसरी ओर अन्य विज्ञानों से प्राप्त जिस ज्ञान का उपयोग भूगोल करता है, उसमें अनेक व्युत्पत्तिक धारणाएँ एवं निर्धारित वर्गीकरण होते हैं। यदि ये धारणाएँ और वर्गीकरण भौगोलिक उद्देश्यों के लिये उपयोगी न हों, तो भूगोल को निजी व्युत्पत्तिक धारणाएँ तथा वर्गीकरण की प्रणाली विकसित करनी होती है। अत: भूगोल मानवीय ज्ञान की वृद्धि में तीन प्रकार से सहायक होता
है:
- विज्ञानों से प्राप्त तथ्यों का विवेचन करके मानवीय वासस्थान के रूप में पृथ्वी का अध्ययन करता है।
- अन्य विज्ञानों के द्वारा विकसित धारणाओं में अंतर्निहित तथ्य की परीक्षा का अवसर देता है, क्योंकि भूगोल उन धारणाओं का स्थान विशेष पर प्रयोग कर सकता है।
- यह सार्वजनिक अथवा निजी नीतियों के निर्धारण में अपनी विशिष्ट पृष्टभूमि प्रदान करता है, जिसके आधार पर समस्याओं का सप्ष्टीकरण सुविधाजनक हो जाता है।
सर्वप्रथम प्राचीन यूनानी विद्वान इरैटोस्थनिज़ ने भूगोल को धरातल के एक विशिष्टविज्ञान के रुप में मान्यता
दी। इसके बाद हिरोडोटस तथा रोमन विद्वान स्ट्रैबो तथा क्लाडियस
टॉलमी ने भूगोल को सुनिश्चित स्वरुप प्रदान
किया। इस प्रकार भूगोल में 'कहां' 'कैसे 'कब' 'क्यों' व 'कितनें' प्रश्नों की उचित
वयाख्या की जाती हैं।
बहुत ही अच्छा लेख भ्राता श्री ! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंNice Books
जवाब देंहटाएंGlorious
जवाब देंहटाएंIt is only one or two page but I need whole chapter.
जवाब देंहटाएंManav bhugol k udhbhav kab huva
जवाब देंहटाएंManav bhugol Ki sankalpana Kya hoti hai
जवाब देंहटाएंGood
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